Shri Ram Ka Pura Naam Kya Hai | Ram Ka Pura Naam

नमस्कार दोस्तों, जैसा की आप सभी को पता है की हिन्दू धर्म में भगवान शिव ,विष्णु ,ब्रह्मा को त्रिदेव रूप में पूजा जाता है। और भगवान राम को विष्णु भगवान का एक अवतार माना जाता है। आपने भी रामायण या रामचरित मानस जरूर सुनी होगी। जब कोरोना का समय चल रहा था। और पुरे देश में लोकडाउन की स्थिति थी। तब दूरदर्शन पर रामानंद सागर की रामायण टीवी पर दिखाई गई थी। जैसा ही हमें पता है की रामायण के मुख्य पात्र राम है। लेकिन क्या आपको पता है की Shri Ram Ka Pura Naam Kya Hai. अगर आप भी Google पर सर्च कर रहे है ,की Ram Ji Ka Pura Naam Kya Hai, तो आप बिलकुल सही जगह आए है। आज हम इस आर्टिकल में Shree Ram Ka Full Name क्या है जानेगे। चलिए शुरू करते है,

Shri Ram Ka Pura Naam Kya Hai

Ram Ji Ka Pura Naam Kya Hai | राम का पूरा नाम

दोस्तों जैसा की हमे पता है की भगवान विष्णु राम भगवान का रूप लेकर रावण का वध करने आए थे। राम भगवान हमेंशा सत्य , वचन निभाने के लिए माने जाते है। आपको पता ही है की भगवान राम के नाम के आगे श्री लगाया जाता है। और राम भगवान का पूरा नाम “श्री रामचंद्र ” है। आपको पता होगा की राम भगवान राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र है। और राजा दशरथ सूर्यवंशी कुल के थे। वैसे तो भगवान राम के कई नाम है। लेकिन ऐसे देखा जाए तो Ram Ka Pura Naam “रामचंद्र दशरथ सूर्यवंशी” हुआ। यानि भगवान राम सूर्यवंशी हुए। चलिए जानते है ,भगवान राम के 108 नामो को।

Shree Ram Ka Full Name | Bhagwan Shri Ram Ka Pura Naam Kya Hai

जैसा की हमें पता है की भारत एक ऐसा देश है, जहाँ हजारों सालों से 33 करोड़ देवी – देवताओं की पूजा होती है। आपने देखा होगा की पुरे हिंदुस्तान में कई तीर्थ स्थल पाए जाते है। हर हिन्दू सभी देवी देवताओँ को पुरी श्रद्धा से मानते और पूजते है। भीष्म पितामह ने इंसानो की मुक्ति के लिए गंगा नदी को भगवान शिव की जटाओ से होते हुए धरती पर उतारा था। सभी देवताओ में भगवान श्री राम विष्णु भगवान के अवतार है। भगवान श्री राम का पूरा नाम श्री रामचंद्र है। चलिए भगवान राम के जीवन के बारे में जानते है ,

भगवान श्री राम का जीवन परिचय

दोस्तों जैसा की आपको पता है की भगवान राम और पिता सिर्फ वचन के लिए जाने जाते है। भगवान श्री राम का जन्म रघुकुल में हुआ था। उनके लिए कहाँ जाता है की “रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई”। राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था। इसके अनुसार राम जी का गौत्र ” विवस्वान ” था और उनका वंश सूर्यवंश था ।

ऐसा कहाँ जाता है की जब जब घरती पर पाप बढ़ता है, तब भगवान विष्णु रूप लेकर धरती पर आते है। और पापीओ का नाश करते है। जब पृथ्वी पर रावण का अत्याचार बढ़ गया था, तब भगवान ब्रह्मा, इंद्रदेव और सभी ऋषि मुनि भगवान विष्णु के पास आए। और सभी ने भगवान से प्रार्थना करते कहाँ की पृथ्वी पर सत्य और धर्म का नाश हो रहा है। राक्षसों का राजा रावण अपने अत्याचारों से तीनों लोको में हाहाकार मचा रहा है।

तब भगवान विष्णु ने कहाँ की पापी के पाप में ही उसका सर्वनाश छुपा होता है। रावण ने जब भगवान शिव और ब्रह्मा जी से वरदान मांगा तो उसने वरदान मांगा की देव, दानव, नाग, किन्नर, गंधर कोई भी मुझे मार न सके। लेकिन वो वानर और मनुष्य के हाथो न मारने का वरदान माँगना भूल गया।

जिस मानव को रावण तुच्छ समझता है, उसी के हाथो से उसका अंत होना निश्चित है। और भगवान के कहा की में राजा दशरथ के पुत्र के रूप में मानव जन्म लेकर पृथ्वी पर सत्य और धर्म की रक्षा करूँगा।

भगवान श्री राम के माता पिता

श्रीराम का जन्म वैवस्वत मन्वंतर में 23 वे चतुर्युग के त्रेता युग में हुआ था । राजा दशरथ अयोध्या के राजा थे। उन्होंने सबसे पहले कौशल्या से विवाह किया था,लेकिन उनके कोई संतान नहीं हुई। फिर उन्होंने कैकयी से विवाह किया, जब उन्हें कैकयी से भी संतान प्राप्ति नहीं हुई तो उन्होंने तीसरा विवाह सुमित्रा से किया। जब उन्हें तीनो पत्नीओ से संतान प्राप्ति नहीं हुई ,तो उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए एक यज्ञ करवाया। और उन्हें तीनो पत्नीओ से चार पुत्र की प्राप्ति हुई।

महारानी कौशल्या के गर्भ से प्रभु श्री राम ने जन्म लिया। माता कैकयी ने भरत को और माता सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुध्न को जन्म दिया। प्रभु श्री राम जन्म के कुछ समय बाद तक अयोध्या के राजमहल में रहे। फिर उन्हें अपने भाईओ के साथ शिक्षा के लिए उपनयन संस्कार करके गुरुकुल भेज दिया गया। वहाँ वे अयोध्या के राजग्रुरु महर्षि वशिष्ठ से शिष्यों की भाती शिक्षा लेते ,भिक्षा मांगते ,जमीन पर सोते ,आश्रम की साफ सफाई करते और अपने गुरु की सेवा करते थे।

राम जी का पराक्रम

जब भगवान राम शिक्षा ग्रहण करके अयोध्या वापस आए तो, ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने आश्रम में राक्षसो के आक्रमण की बात बताई। और श्री राम को राजा दशरथ की आज्ञा लेकर अपने साथ ले गए। श्री राम के भाई लक्ष्मण हमेंशा उनके साथ ही रहते थे। भगवान राम और लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ आश्रम आ गए। गुरु विश्वामित्र की आज्ञा से श्री राम ने ताड़का और सुबाहु का वध किया और मारिच को दूर दक्षिण किनारे समुद्र में फेक दिया।

श्री राम जब अपने गुरु के साथ विचरण कर रहे थे ,तब उन्होंने गौतम बुद्ध के श्राप से पत्थर बनी अहिल्या को अपने चरण स्पर्श करके उनका उद्धार किया।

राम जी का विवाह

ब्रह्मर्षि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ मिथिला राज्य में सीता माता के स्वयंवर में पहुंचते है। वहाँ राजा जनक को शिव द्रारा दिया हुआ शिव धनुष को उठाकर उसपर प्रत्यंचा चढ़ाते समय धनुष तोड़कर, प्रभु श्री राम माता सीता से विवाह करते है।

धनुष टूटने की आवाज से वह भगवान परशुराम प्रगट होते है और क्रोधित होकर लक्ष्मण के साथ बहस करते है। लेकिन प्रभु राम संयम से उन्हें समजाते है। और अंत में परशुराम को विष्णु भगवान अपना सातवां अवतार होने का ज्ञान कराते है।

राम जी को चौदह वर्ष का वनवास

राम जी के विवाह के कुछ समय बाद राजा दशरथ राजयसभा में राजयभिषेक का निर्णय सुनाते है। भगवान राम पहले इस बात का असंमत होते है,लेकिन बाद में पिता की मानकर स्वीकार्य करते है। इस समय भरत और शत्रुध्न अपने नाना से मिलने गए होते है। अयोध्यानगरी नगरी में राज्यभिषेक की तैयारी होने लगती है।

लेकिन अगली सुबह कैकयी माता अपने कक्ष में खाए पीना नाराज होकर बैठी होती है। वे अपनी दासी मंथरा के बहकावे में आकर अपने पुत्र भरत के राज्याभिषेक की इच्छा रखती है। रानी कैकयी राजा दशरथ की सबसे प्रिय और सुन्दर पत्नी होती है। एक बार युद्ध में रानी कैकयी राजा दशरथ की रक्षा करती है। और राजा खुश होकर उन्हें दो वचन मांगने को कहते है। लेकिन रानी उस समय वचन नहीं मांगती। जब राजा दशरथ उनके पास आते है ,तो वे वो दो वरदान मांगती है। एक वचन में भरत का राज्याभिषेक और दूसरे में राम को चौदह वर्ष का वनवास मांगती है।

भरत मिलाप

पिता के वचन का पालन करने के लिए राम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ पिता की आज्ञा लेकर वन की और चले जाते है। राज्य की प्रजा राम के साथ वन में साथ जाने लगते है। लेकिन भगवान राम तमसा नदी के पास रुकते है। और प्रजा के साथ विश्राम करते है। सुबह जल्दी श्री राम ,सीता माता और लक्ष्मण प्रजा को सोते हुए छोड़कर चले जाते है। और प्रजावासी निराश होकर अयोघ्या वापस चले जाते है।

यमुना नदी पार करने के लिए केवट उन्ही सहायता करते है। नदी पर करके चित्रकूट में कुटिया बनाकर रहते है। कुछ दिन बाद भरत, पुरे परिवार और राजगुरु व प्रजा के साथ चित्रकूट आते है। और राम जी को पिता की मृत्यु का समाचार देते है।

भरत श्री राम को अयोध्या ले जाने के लिए मनाते है ,लेकिन राम भगवान मना कर देते है। और भरत को राजकार्य सँभालने का कहते है। मगर भरत मना देते है और भारत श्री राम चरण पादुका सिर पर रखकर चले जाते है और राजसिंहासन पे रख देते है। और खुद भी भगवान राम की तरह नंदीग्राम के वनों में कुटिया बनाकर वनवासी की तरह रहते है।

श्री राम के 108 नाम | Shri Ram Ka Pura Naam Kya Hai

  1. श्रीराम: –योगीजन
  2. रामचन्द्र: – चंद्रमा के समान
  3. रामभद्र: – कल्याणमय राम
  4. श्वत: :- सनातन राम
  5. राजीवलोचन:- कमल के समान नेत्रोंवाले
  6. श्रीमान् राजेन्द्र:- राजाओं के भी राजा, चक्रवर्ती सम्राट
  7. रघुपुङ्गव:- रघुकुल में श्रेष्ठ
  8. जानकीवल्लभ:- जनककिशोरी सीता के प्रियतम
  9. जैत्र: – विजयशील
  10. जितामित्र:- शत्रुओं को जीतनेवाला
  11. जनार्दन:- याचना करने योग्य
  12. विश्वामित्रप्रिय:-विश्वामित्रजी के प्रियतम
  13. दांत:- जितेंद्रिय
  14. शरण्यत्राणतत्पर:- शरणागतों के रक्षा में तत्पर
  15. बालिप्रमथन:- बालि नामक वानर को मारनेवाले
  16. वाग्मी- अच्छे वक्ता
  17. सत्यवाक्- सत्यवादी
  18. सत्यविक्रम:- सत्य पराक्रमी
  19. सत्यव्रत:- सत्य का पालन करनेवाले
  20. व्रतफल:- सम्पूर्ण व्रतों के फलस्वरूप
  21. सदा हनुमदाश्रय:- निरंतर हनुमान जी के आश्रय अथवा हनुमानजी के ह्रदयकमल में निवास करनेवाले
  22. कौसलेय:- कौसल्याजी के पुत्र
  23. खरध्वंसी :- खर का नाश करनेवाले
  24. विराधवध-पण्डित:- विराध दैत्य का वध करनेवाले
  25. विभीषण-परित्राता- विभीषण के रक्षक
  26. दशग्रीवशिरोहर:- दशशीश रावण के मस्तक काटनेवाले
  27. सप्ततालप्रभेता – सात ताल वृक्षों बींध डालनेवाले
  28. हरकोदण्ड- खण्डन:- शिवधनुष को तोड़नेवाले
  29. जामदग्न्यमहादर्पदलन:- परशुरामजी के महान अभिमान को चूर्ण करनेवाले
  30. ताडकान्तकृत- ताड़का का वध करनेवाले
  31. वेदान्तपार:- वेदांत से भी अतीत
  32. वेदात्मा:- वेदस्वरूप
  33. भवबन्धैकभेषज:- संसार बन्धन से मुक्त करनेवाले औषधरूप
  34. दूषणप्रिशिरोsरि:- दूषण और त्रिशिरा राक्षसों के शत्रु
  35. त्रिमूर्ति:- ब्रह्मा,विष्णु और शिव- तीन रूप धारण करनेवाले
  36. त्रिगुण:- तीनों गुणों के आश्रय
  37. त्रयी- तीन वेदस्वरूप
  38. त्रिविक्रम:- वामन अवतार लेनेवाले
  39. त्रिलोकात्मा- तीनों लोकों के आत्मा
  40. पुण्यचारित्रकीर्तन:- जिनकी लीलाओं का कीर्तन परम पवित्र हैं, ऐसे
  41. जितलोभ:- लोभ को परास्त करनेवाले
  42. धन्वी- धनुष धारण करनेवाले
  43. दण्डकारण्यवासकृत्- दण्डकारण्य में निवास करनेवाले
  44. अहल्यापावन:- अहल्याको पवित्र करनेवाले
  45. पितृभक्त:- पिता के भक्त
  46. वरप्रद:- वर देनेवाले
  47. जितेन्द्रिय:- इन्द्रियों को काबू में रखनेवाले
  48. जितक्रोध:- क्रोध को जीतनेवाले
  49. जितलोभ:- लोभ की वृत्ति को परास्त करनेवाले
  50. जगद्गुरु:- अपने आदर्श चरित्रोंसे सम्पूर्ण जगत् को शिक्षा देनेके कारण सबके गुरु
  51. ऋक्षवानरसंघाती:- वानर और भालुओं की सेना का संगठन करनेवाले
  52. चित्रकूट – चित्रकूट पर्वत पर निवास करनेवाले
  53. जयन्तत्राणवरद:- जयन्त के प्राणों की रक्षा करनेवाले
  54. सुमित्रापुत्र- सेवित:-सुमित्रानन्दन लक्ष्मण के द्वारा सेवित
  55. सर्वदेवाधिदेव:‌- सम्पूर्ण देवताओं के भी अधिदेवता
  56. मृतवानरजीवन:- वानरों को जीवित करनेवाले
  57. मायामारीचहन्ता- मायामय मृग मारीच का वध करनेवाले
  58. महाभाग:- महान सौभाग्यशाली
  59. महाभुज:- बड़ी- बड़ी बाँहोंवाले
  60. सर्वदेवस्तुत:- सम्पूर्ण देवता जिनकी स्तुति करते हैं, ऐसे
  61. सौम्य:- शांतस्वभाव
  62. ब्रह्मण्य:- ब्राह्मणों के हितैष
  63. मुनिसत्तम:- मुनियोंमे श्रेष्ठ
  64. महायोगी- महान योगी
  65. महोदर:- परम उदार
  66. सुग्रीवस्थिर-राज्यपद:- सुग्रीव को स्थिर राज्य प्रदान करनेवाल
  67. सर्वपुण्याधिकफलप्रद:-सम्स्त पुण्यों के उत्कृष्ट फलरूप
  68. स्मृतसर्वाघनाशन:- स्मरण करनेमात्र से ही सम्पूर्ण पापों का नाश करनेवाले
  69. आदिपुरुष: – आदिभूत अन्तर्यामी परमात्मा
  70. महापुरुष:- समस्त पुरुषों मे महान
  71. परम: पुरुष:- सर्वोत्कृष्ट पुरुष
  72. पुण्योदय:- पुण्य को प्रकट करनेवाले
  73. महासार:- सर्वश्रेष्ठ सारभूत परमात्मा
  74. पुराणपुरुषोत्तम:- पुराणप्रसिद्ध क्षर-अक्षर पुरुषोंसे श्रेष्ठ लीलापुरुषोत्तम
  75. स्मितवक्त्र:- जिनके मुखपर सदा मुस्कानकी छटा छायी रहती है, ऐसे
  76. मितभाषी- कम बोलनेवाले
  77. पूर्वभाषी – पूर्ववक्ता
  78. राघव:- रघुकुल में अवतीर्ण
  79. अनन्तगुण गम्भीर:- अनन्त कल्याणमय गुणों से युक्त एवं गम्भीर
  80. धीरोदात्तगुणोत्तर:- धीरोदात्त नायकके लोकोतर गुणों से युक्त
  81. मायामानुषचारित्र:- मायाका आश्रय लेकर मनुष्योंकी-सी लीलाएँ करनीवाले
  82. महादेवाभिपूजित:- भगवान शंकर के द्वारा निरन्तर पूजित
  83. सेतुकृत- समुद्रपर पुल बाँधनेवाले
  84. जितवारीश:- समुद्रको जीतनेवाले
  85. सर्वतीर्थमय:- सर्वतीर्थस्वरूप
  86. हरि:- पाप-ताप को हरनेवाले
  87. श्यामाङ्ग:- श्याम विग्रहवाले
  88. सुन्दर:- परम मनोहर
  89. शूर:- अनुपम शौर्यसे सम्पन्न वीर
  90. पीतवासा:- पीताम्बरधारी
  91. धनुर्धर:- धनुष धारण करनेवाले
  92. सर्वयज्ञाधिप:- सम्पूर्ण यज्ञों के स्वामी
  93. यज्ञ:- यज्ञ स्वरूप
  94. जरामरणवर्जित:- बुढ़ापा और मृत्यु से रहित
  95. शिवलिंगप्रतिष्ठाता- रामेश्वर नामक ज्योतिर्लिंग की स्थापना करनेवाले
  96. सर्वाघगणवर्जित:‌ – समस्त पाप-राशियों से रहित
  97. परमात्मा- परमश्रेष्ठ, नित्यशुद्ध-बुद्ध –मुक्तस्वरूपा
  98. परं ब्रह्म- सर्वव्यापी परमेश्वर
  99. सच्चिदानन्दविग्रह:- सत्, चित् और आनन्द ही जिनके स्वरूप का निर्देश करानेवाला है, ऐसे परमात्मा अथवा सच्चिदानन्दमयदिव्यविग्रह
  100. परं ज्योति:- परम प्रकाशमय,परम ज्ञानमय
  101. परं धाम- सर्वोत्कृष्ट तेज अथवा साकेतधामस्वरूप
  102. पराकाश:- परमव्योम नामक वैकुण्ठधामरूप, महाकाशस्वरूप ब्रह्म
  103. परात्पर:- इन्द्रिय, मन, बुद्धि आदि से भी परे परमेश्वर
  104. परेश:- सर्वोत्कृष्ट शासक
  105. पारग:- सबकोपार लगानेवाले अथवा मायामय जगत की सीमा से बाहर रहनेवाले
  106. पार:- सबसे परे विद्यमान अथवा भवसागर से पार जाने की इच्छा रखनेवाले प्राणियों के प्राप्तव्य परमात्मा
  107. सर्वभूतात्मक:- सर्वभूतस्वरूप
  108. शिव:- परम कल्याणमय

अभी तक हमने जाना की “Shri Ram Ka Pura Naam Kya Hai” क्या होता है, आशा करते है आपको इस Article से कुछ जानकारी जरूर मिली होगी। और अगर आपको यह Post अच्छी लगी हो तो इस Share करना ना भूले और कुछ समज में ना आया हो तो आप Comment भी कर सकते है। हमारा Article यहाँ तक पढ़ने के लिया आपका धन्यवाद ….

FAQ’s About “Shri Ram Ka Pura Naam Kya Hai”

1.रामायण में राम का असली नाम क्या है

रामानंद सागर निर्मित हिन्दी धारावाहिक रामायण में राम की भूमिका हिन्दी फिल्म एवं दूरदर्शन अभिनेता अरुण गोविल निभायी थी। जिससे उन्हें बहुत प्रसिद्धि मिली।

2. राम की कितनी पत्नियां थी

भगवान राम ने सीता माता को कहाँ था की मेरे पुरे जीवन काल में सिर्फ तुम्ही मेरी पत्नी रहोगी। में तुम्हारे सिवा किसी स्त्री को देखूंगा तक नहीं। इसलिए राम की सिर्फ एक ही पत्नी थी। वो थी माता सीता।

3. सीता का असली नाम क्या है

सीता माता राजा जनक की पुत्री होने के कारण इन्हे जानकी कहलाती है। और वे मिथिला के राजा की पुत्री होने के कारण मैथिली नाम से भी जानी जाती है। रामानंद सागर निर्मित हिन्दी धारावाहिक रामायण में सीता का रोल करने वाली दीपिका चिखलिया थी।

4. श्री राम का जन्म किस युग में हुआ

श्रीराम का जन्म वैवस्वत मन्वंतर में 23 वे चतुर्युग के त्रेता युग में हुआ था ।

5. भगवान राम की आयु कितने वर्ष की थी

माना जाता है की श्री राम के विवाह के समय उनकी उम्र 27 वर्ष की थी। फिर उन्हें 14 वर्ष का वनवास हुआ। रावण से युद्ध के समय राम भगवान 40 वर्ष के थे। ऐसा कहा जाता है की उन्होंने 11000 साल तक अयोध्या पर शासन किया।

6. श्री राम के वंशज कौन है ?

ऐसा माना जाता है की सिसोदिया, कुशवाह (कच्छवाहा), मौर्य, शाक्य, बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) आदि जो वर्तमान के राजपूत हैं वो सभी भगवान राम के वंशज है। जयपुर के राजघराने की महारानी पद्मिनी और उनके परिवार के लोग राम के पुत्र कुश के वंशज माने जाते हैं।

पढ़िए कुछ और महत्वपूर्ण Article

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *